भैरव अष्टमी : कैसे करें भैरव और शनि को प्रसन, जानिए यह विशेष मंत्र..!
भैरव जयंती को कालभैरव जयंती, कालाष्टमी और कालाभैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को शिवजी के काल भैरव रूप की पुरे विधि विधान के साथ पूजा की जाती हैं। हिन्दू मान्यतायों के अनुसार, इस दिन को काल भैरव का जन्म माना जाता है। काल का अर्थ होता है समय और भैरव को भगवान शिव का रुप माना जाता है। कालभैरव समय के देवता माने जाते हैं और इस दिन पूरे भारत में उत्साह के साथ पर्व मनाया जाता है। भगवान शिव के दो रुप हैं एक बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव। बटुक भैरव रुप अपने भक्तों को सौम्य प्रदान करते हैं और वहीं काल भैरव अपराधिक प्रवृत्तयों पर नियंत्रण करने वाले प्रचंड दंडनायक हैं।
शनि का प्रकोप एकमात्र भैरव की आराधना से ही शांत होता है। पुराणों के अनुसार भैरव अष्टमी का दिन भैरव और शनि को प्रसन्न करने और भैरवजी की पूजा के लिए अति उत्तम माना गया है। वैसे उनकी आराधना का दिन रविवार और मंगलवार नियुक्त है।
जानिए किन बातों का करना चाहिए पालन:
- भैरव आराधना से पूर्व जान लेना चाहिए कि कुत्ते को कभी दुत्कारे नहीं बल्कि उसे भरपेट भोजन कराएं।
- जुआ, सट्टा, शराब, ब्याजखोरी, अनैतिक कृत्य आदि आदतों से दूर रहें।
- पवित्र होकर ही सात्विक आराधना करें। अपवित्रता वर्जित है।
- इस दिन भैरव के हर रूप की आराधना की जाती है।
- इस दिन भैरवनाथ को चने-चिरौंजी, पेड़े, काली उड़द और उड़द से बने मिष्ठान्न इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगाना लाभकारी है इससे भैरव प्रसन्न होते है।
कैसे करें पूजा
इसी दिन भगवान महादेव ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया था। इस दिन कालभैरव के मंदिर में जाकर उनकी प्रतिमा पर सिंदूर और तेल चढ़ाएं और मूर्ति के सामने बैठकर काल भैरव मंत्र का जाप करें। इसके साथ ही ऐसी मान्यता है कि इस दिन 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ऊं नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाने से सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। साथ ही भैरव की प्रिय वस्तुयें जैसे काले तिल, उड़द, नींबू, नारियल, अकौआ के पुष्प, कड़वा तेल, सुगंधित धूप, पुए, मदिरा और कड़वे तेल से बने पकवान दान कर सकते हैं।
भैरव आराधना के विशेष मंत्र
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– ‘ॐ कालभैरवाय नम:।’
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– ‘ ॐ भयहरणं च भैरव:।’
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– ‘ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्।’
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– ‘ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं।’
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– ‘ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।’